उत्तराखंड गहरी आध्यात्मिकता और प्राकृतिक भूमि है जो न केवल लोगों में बल्कि उनके द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों और उनके द्वारा अपनाई जाने वाली संस्कृति में भी देखी जाती है। यहाँ के निवासियों का और प्रकृति का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति यहाँ के लोगो को एक आदर्श जीवनचर्या के लिए एक माँ की तरह सारी सुविधाएँ देती है। बदले में उत्तराखंड के निवासी समय समय पर प्रकृति की रक्षा और उसके सवर्धन से जुड़े पर्व ,उत्सव मना कर प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना नहीं भूलते। बटर फेस्टिवल, जिसे अंडूरी उत्सव के नाम से भी जाना जाता है।

बटर फेस्टिवल

उत्तराखंड का बटर फेस्टिवल ( BUTTER FESTIVAL) 

बटर फेस्टिवल उत्तरकाशी जिले के रैथल ग्रामवासी , मखमली दायरा बुग्याल में भाद्रपद की संक्रांति को अपने मवेशियों के ताजे दूध ,दही , मठ्ठा और मक्खन प्रकृति को अर्पित करके इस उत्सव को मनाते हैं। अंढूड़ी उत्सव या बटर फेस्टिवल (butter festival ) कहते हैं । दायरा बुग्याल समुद्रतल से 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला हुवा है। । यह त्योहार हर साल रायथल में मनाया जाता है। यह त्योहार खुले घास के मैदानों में चरते समय मवेशियों को बुरी ताकतों से बचाने के लिए भगवान कृष्ण के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।
जैसे ही वसंत घास के मैदानों को हरी-भरी घास से ढक देता है, रायथल के ग्रामीण अपने मवेशियों को चरवाहों की निगरानी में चरने के लिए भेजते हैं। रैथल, बुग्याल और गोई गांवों के लोग भी गर्मियों के दौरान अपनी गायों को विशेष शेड ( गोई ,चिलपाड़ा )में बनी अपनी छानियों में रहने के लिए भेजते हैं। बुग्याल में गायें विशेष घास खाती हैं और इससे उन्हें अधिक दूध देने में मदद मिलती है। इस घास में कुछ विशेष औषधि भी होती है। अगस्त और सितंबर में पहाड़ों पर ठंड पड़ने लगती है।
ठंड बढ़ने से पहले सभी ग्रामीण अपने मवेशियों को घर वापस ले आते हैं। उनका मानना ​​है कि प्रकृति उनके जानवरों की लगभग 5 महीने तक देखभाल करती है। जानवरों को घर लाने से पहले प्रकृति को धन्यवाद कहने के लिए वे एक उत्सव का आयोजन कर उनके सुरक्षित लौटने की खुशी मानते है। उनका मानना ​​है कि प्रकृति के कारण उनके जानवर अच्छा दूध देते हैं। इसलिए वे उस दूध में से कुछ हिस्सा प्रकृति को लौटा देते हैं और अपना आभार व्यक्त करने के लिए प्रकृति की गोद में जश्न मनाते हैं। बटर फेस्टिवल अंधुडी फेस्टिवल हर साल भाद्रपद की संक्रांति यानि 16 -17 अगस्त को मनाया जाता है।

कैसे मानते है बटर फेस्टिवल :

बटर फेस्टिवल (अंधुडी उत्सव) के दिन, ग्रामीण मवेशियों के आगमन का जश्न मनाने के लिए अपने घरों को सजाते हैं। बटरफेस्ट की तैयारियां हफ्तों पहले से शुरू हो जाती हैं। लोग अपने रिश्तेदारों को अँडुरी उत्सव में आमंत्रित करते हैं। इस त्योहार के दिन लोग दूध, दही, ढोल दमाऊ आदि पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ दयारा बुग्याल पहुंचते हैं। वहां वे एक दूसरे के ऊपर दूध और मट्ठा डालकर और प्रत्येक के ऊपर मक्खन डालकर होली मनाते हैं। महाराष्ट्र की जन्माष्टमी की तरह दही हांड़ी उत्सव का आयोजन भी किया जाता है।
dahi- handi ritual
Radha- Krishna holi
ब्रज की होली की तरह, राधा और कृष्ण के रूप में सजे पात्र एक-दूसरे के साथ माखन की होली खेलते हैं। पारंपरिक वेशभूषा के अलावा पारंपरिक स्थानीय संगीत (रासो ) का भी आयोजन किया जाता है। मट्ठे से भरी पिचकारियों से एक दूसरे को खूब भिगाते हैं। उत्तराखंड पर्यटन बोर्ड के त्योहारों में शामिल होने के बाद से बटर फेस्टिवल (अंधुड़ी उत्सव) में कई बदलाव देखने को मिले हैं। पहले यह त्योहार एक-दूसरे पर गोबर फेंककर मनाया जाता था। बाद में गाय के गोबर का स्थान दूध, मक्खन और छाछ ने ले लिया, जो होली के रंगों की याद दिलाता है, जबकि छाछ को चंचलतापूर्वक फेंककर एक दूसरे पर डाला जाता है। दूध, दही और मक्खन के प्रयोग से इसकी प्रसिद्धि दुनिया भर में फैल गई। 

 

The festival is celebrated between August 16 and 18
Locals and tourists participate in the festival
जैसे ही बटर फेस्टिवल अपना जादुई जादू बिखेरता है, दयारा बुग्याल रंगों और आनंद के बहुरूपदर्शक में बदल जाता है। शानदार परिदृश्य के बीच, पहाड़ियाँ हँसी, गाने और छाछ के बर्तनों की खनक से गूंज उठती हैं।

कैसे पहुंचे –

दायरा बुग्याल जाने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन व् हवाई अड्डा देहरादून है। देहरादून से सड़क मार्ग द्वारा उत्तरकाशी के रैथल गावं तक आसानी से ,टाटा सूमो या कार से पंहुचा जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन की बसें भी उपलब्ध हैं। रैथल गावं से दायरा बुग्याल 11 किलोमीटर दूर पड़ता है। रैथल से दायरा बुग्याल जाने के लिए पैदल ट्रैकिंग करनी पड़ती है।

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